Uttarakhand : ट्रैकिंग के लिए आई थीं एलिजाबेथ, 23 साल यशोदा बन बच्चों को पाला, जर्मनी लौटीं तो रोया गांव

Uttarakhand Elizabeth came for trekking, raised children as Yashoda for 23 years, village cried when she returned to Germany

उन्होंने देवाल विकासखंड के दो बच्चों को गोद लिया और यशोदा बन कर उनकी परवरिश की। उन्हें पढ़ाया-लिखाया और शादी भी धूमधाम से की।

61 वर्ष की उम्र में रूपकुंड ट्रैकिंग के लिए आईं जर्मनी की एलिजाबेथ को मुंदोली की एक घटना ने ऐसा झकझोरा की वह यहीं की होकर रह गईं। उन्होंने देवाल विकासखंड के दो बच्चों को गोद लिया और यशोदा बन कर उनकी परवरिश की। उन्हें पढ़ाया-लिखाया और शादी भी धूमधाम से की।

यही नहीं उन्होंने गांवों के कई अन्य बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी खुद ली और कॅरिअर बनाने के लिए कई कोर्स भी कराए। आज यह बच्चे अन्य शहरों में नौकरी कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने अन्य जरूरतमंदों की मदद भी की। यही नहीं ईसाई होने के बाद भी वे मंदिरों में पूजा करती थीं। मंगलवार को जब एलिजाबेथ अपने देश लौटने लगीं तो पूरा गांव रो पड़ा। 

यहां की यादें हमेशा दिल में रहेंगी
23 साल मैं इस क्षेत्र में रही। अब उम्र के 84वें पड़ाव में पहुंचने के बाद शरीर से कमजोर हो गई हूं। अब अपने देश जा रही हूं, लेकिन यहां की यादें हमेशा दिल में रहेंगी।
– एलिजाबेथ

अनाथ हुए बच्चे तो सहारा बन बदली जिंदगी
मुंदोली के काम सिंह व उसकी पत्नी की अचानक मौत के बाद उनकी छह साल की बेटी विमला व तीन साल का बेटा भगत अनाथ हो गया था। इन बच्चों के बारे में भुवन बिष्ट ने एलिजाबेथ को बताया। इस घटना ने एलिजाबेथ को झकझोर कर रख दिया था।

इसके बाद उन्होंने दोनों बच्चों को गोद ले लिया और यहीं रहने लगीं। दोनों बच्चों के प्यार एवं स्नेह में उन्होंने कभी कमी नहीं रखी। रूप, रंग, संस्कृति बोली अलग होने के बाद भी उन्होंने दोनों बच्चों की परवरिश की। यही नहीं विमला का विवाह भी बड़े धूमधाम से किया था।

इनको भी काबिल बनाया… एलिजाबेथ ने देवाल ब्लॉक के वाक, कुलिंग, वाण, मुंदोली गांव के 17 बच्चों के भरण पोषण व शिक्षा में भी मदद की। कई का उपचार भी कराया। वाण की एक बेटी को उन्होंने बीएड, एमए कराया। वहीं कुलिंग की ज्योति को फार्मासिस्ट व लक्ष्मी को एएनम का प्रशिक्षण दिलाया। 

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